सोमवार, १५ नोव्हेंबर, २०२१

इतना तो हक है ना...

 इतना तो हक है ना...

मामूली सी तकरार हो 

हम उनसे खफा हो 

आँखों में नमी हो 

और वो हमे मनाने आए... 


इतना तो हक है ना...

भीगी भीगी आँखे हो 

होंठों से जरा छुले तो 

सिरहन बदन से दौड़ जाए 

और हम उनसे लिपट जाए 


इतना तो हक है ना...

कुछ कहे बगैर 

कोई जादू कर जाए 

मामूली तकरार को 

यूं हवा कर जाए 

और वो हमारी मुस्कान बन जाए 


इतना तो हक है ना...

बेइंतहा मुहब्बत से    

नजर भर देख वो 

नजरों सेही संवार ले 

और हम उनकी बाहों में  

खुद को फ़ना कर जाए 

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