शनिवार, ८ जानेवारी, २०२२

कुछ अव्वल सा लिखते है

शुरु से शुरु करते है और फिर 
वही से खतम करते आते है
या फिर शुरु से शुरु करते है 
और कुछ अव्वल सा लिखते है
कहो तो, दिल के हजार टूकडों को 
एक ही बार में समेट लेते है
या कहो तो दिल को बिखरने से 
पहले ही संभाल लेते है

माजी में झाँककर 
उन हसीन शामों की
उन नीले अरमानों की
कुछ अदाई कर लेते है
या कुछ कुछ बाकी,
थोडा उधार दोनों ही रख लेते है

और मीठे से वो एहसास जो
हम ने साथ महसुस किये
खट्टी सी वो तकरारे
जिन्हे मिलके भूला दिये
हिसाब उनका भी पक्का कर लेते है
या कोई गलती बेमतलब रख देते है

क्या पता किस अरमान का
क्या है अंजाम
क्या पता किस अंजाम का
क्या है नया आगाज

खैर, सुनो
जान के अनजान बनने से बेहतर
इक दुजे के हमराज बनना है
या तो साहिर की कही बात
हथेली पर निशाँ करना है...
या तो फिर से अजनबी बन जाते
या खूबसूरत मोड़ लेकर
बुना अफसाना छोड देते है…

क्या आसान है बताओ
उस पर अमल करते है
शुरु से शुरु करते है और...

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