ये हूनर कहॉं से लाती हो तुम
दिल के सेंकडों तुकडे कर के भी
अपना दिवाना बनाती हो तुम
ये तुम्हारी गहरी मोटी आँखोंमे
तुम कौनसा सूरमा भरती हो की
कजरारी गिरफ्त मेरे सर चढती है
मै अपने आप को खो दु
ये हूनर कहॉं से लाती हो तुम
तुम ना कोई हूर, हो ना कोई मलका
फिर किस नूर से तुम, मुझे
यूँ घायल करती हो
अपना दिवाना बनाती हो
ये हूनर कहॉं से लाती हो तुम
ये तुम्हारी दिलकश सादगी में
मासूयित कहॉं से लाती हो...
माशूक बनने की चाहत
तुम मुरीद बनाती हो...
ये हूनर कहॉं से लाती हो तुम
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