ये जिंदगी बहुत शोर बढ गया है तुझमे
बहुत ही मचा है हल्लागुल्ला भीतर
क्या कुछ तो समझ पाती है तू
कोई बात आती भी है तेरे पल्ले
इतना कचर कचर पचर पचर है
भीतर- बाहर इधर-उधर, चारो और
कुछे भी तो सुनाई नहीं देता ठंगसे
और हर कोई सुनाने में मसरूफ है इधर...
ये जिंदगी बहुत शोर बढ गया है तुझमे
मैं उब गयी हूँ इस कोलाहल से
उधम भरे आसपडोस के इस माहौल से
तू जानती भी है जिंदगी,
ये चिल्लाहट किस हद तक बढा है
मुझे मेरेही दिल की दस्तक नहीं मिलती
धडकने क्या खाक सुनाई देगी,
मेरी हो चाहे फिर किसी और की..
उन आवाजों को तो तू भूलही जा
जिनमें पुकार हैै, सवाल है और दर्दभी
ये जिंदगी...ये जिंदगी...
तू ही बता इस शोर को कैसे करे खारीज
कहॉंसे पुकार लाये अमन के सुकून को
जिस सुकून में सुनाई दे धडकने और
सुनाई दे रूह की रूह तक आवाजे
इत्मिनानसे...!! ठहराव से!!
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