रविवार, ३० सप्टेंबर, २०१८

फर्क पडना

कभी ना भी हो तुजसे जुडी कोई बात
या कभी बन जाती कोई लंबी रात
युंही कर लेती हुं तेरा जिक्र दिल बहलाने

जाने क्यो अटकी है जान तेरे धडकन में
कई बार पुछा हवा के झरोकों ने
तू तो मुद्दतो याद नहीं करता
मेरा जहन है की तुझे भुलने नहीं देता

गहरी  तेरी बिरहा की पीडा है 
उंगलीयों से जमीं आस्मां पर लिखा है
कोई जवाब तो आता नहीं तेरी और से, खैर
तू बन गया है रे मेरा जहॉं 
अब तू इस दिल में रहे या और कहां

फर्क नहींऽऽऽ पडता
अं, मे बी..शायद..पता नहीं
इत्तुसा तो पडता है...

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