बुधवार, २६ सप्टेंबर, २०१८

कश्मकश


जे. एम. रोड कि नजाने क्या बात थी, वो ऐसे हि हमेशा जगमगाती , झिलमिलती  रहती थी..और आज तो सुहेल का मूड भी खुशियोंसे भरा था..जे. एम. रोड की रंगबेरंगी शाम सुहेल के दिल को सुकून दे रही थी. असल में तो वो उस सुकून के इंतजार में था जिसके लिए उसकी बेचैनी दिल के सुकून पर धीरे से हावी हो रही थी. उसे बेचैन कर रही थी और मदहोश भी. पर  वक्त था, जो कट नहीं रहा था. हालॉंकी वक्त बेचारा अपने सुईपर समयसेही चल रहा था. सुहेल ही घरसे जल्दी निकला  था और अब मौसमी के आनेके बीस मिनट पहलेही रेस्तरॉं के सामने पहुँचा था.
इंतजार की पीडा से बचने वह आसपास की गलीयो में युँही टहलता रहा. शाम की ठंठी हवा बहने लगी वैसे उसका मन और भी हलका हलका रंगीन होने लगा. ऐसे मे बारीश की दो चार बुँदे गिरी. मीट्टी की सौंदी सौंदी खुशबू बहने लगी और उसकी पुरानी यादे ताजा हो गयी. कभी उसका दफ्तर भी इसी गली में हुवा करता था. यहॉं की गलिया, चाय के ठेले, गोल गप्पोंके, आईस्क्रीम की दुकानेे उसे भलीभॉती पता थे. वह चलते चलते एक गली में मुड गया. वहॉं एक टेम्पोे गाडी आती थी. समोसा, कचोडी, पापडी,  बाजरे की पुरीयॉं,  ढोकला और कई तरह तरह के स्नेक्स  होते उनमे. गाडी शामके एखाद घंटे के लिए ही होती थी. गाडीवाले दोनो मियॉंबिवी बडे चॉंवसे लोगों को खिलाते थे. अक्सर  वह दोनो भी इसी  गाडी पर आते थे, अकेले नहीं. दफ्तर के बाकी साथियोंके साथ. उसे याद था, वह हमेशा बाजरे की पुडीयॉं लेती थी. उसने अब भी उसके लिए बाजरे की पुडीयॉं का एक पॅकेट बनवा लिया.
सुहेल फिर रेस्तरॉं के पोर्च मे आकर रूका. रेस्तरॉं के अंदर जाकर बैठने का उसे खयाल हुवा पर मौसमी को पहलीही नजर में देखने का इरादा उसे अंदर जानेसे रोक रहा था. कई महिनों बाद दोनो मिल रहे थे. इसलिये वो काफी प्रसन्न था. मौसमीसे अपने दिल की बात वक्त पे ना कह सका, इस बात का सुहेल को काफी मलाल था! अब भी वही बात याद आयी और उसका दिल थोडा खट्टा हुवा.
सुहेल का दोस्त विशाल उससे अक्सर कहता था, 'मौसमी को तुम काफी इंटेलिजन्ट लगते हो. लगते  क्या भाई तुम तो हो हि. हमेशा तुम्हारी बात करती है. तुम्हारे काम की तारीफ करती है. मुझे लगता है उसे तुम अच्छे लगते हो, उस तरह. कुछ ज्यादाही पसंद करती है..शायद उसके दिल में..'
"कुछ भी बको मत. हम तो एक दुसरे को देखते भी नहीं मुखातिब क्या खाक होंगे’ सुहेल बात तो सही कर रहा था. दोनो के बीच दोस्ती नही थी बस कलीगवाली बातचीत थी- काम से काम तक. मगर विशाल उसे मौसमी का नाम लेकर छेडता था और वी गुस्से से लाल बुंद होकर कहता, तुम उसका नाम मत लिया करो, मुझे तो वह बिलकुल भी पसंद नहीं. कैसी मोटी मोटी आँखे है उसकी, देखते ही डर लगे और जहनियत तो बिलकुल भी नहीं उसमे. हर बात पे सवाल करती रहती है, पुरा वक्त गिरती पडती या किसीकी डॉंट खाती रहती है..और कुछ ज्यादा ही आझाद खयालोंकी नही वो?  '
"अजीब हो यार तुम, वह तुम्हारे तारिफों के पुल बॉंधती थकती नहीं और तुम उसकी तोहिन करते सोचते नहीं. मुझे तो बडी पसंद है वह. तुम्हे नजर नही आता होगा मगर बिलकुल जहन है..बहोत दूर कि सोचती है हमेशा..सच कहुं मैं अगर थोडा भी उसकी तरह पागलपन कर सकता ना तो उसे जरूर प्रपोज करता..पर नहीं हमारी राहे काफी जुदा है. मेरे उसे पाने के लालच में मै  उसका सुकून और अपनी दोस्ती दोनो भी नहीं खो सकता.'
विशाल की बाते सुहेल के दिलमें चुभती रहती थी.
सुहेल सचमें मौसमी को पसंद नहीं करता था. उसे वह किसी भी मुआमलें में अपने बराबर की नहीं लगती थी. सबसे ज्यादा तो उसका रोशनख्याल होना. सुहेल कोई पिछडे विचारों का था नही, मगर मौसमी के आझाद खयाल उसे कुछ ज्यादा हि आझाद लगते थे. उपर से उसका सहेलीयोंसे ज्याद दोस्तों के साथ वक्त बिताना, दुनिया गुमने का मिजाज इन सारी बातों से वह झुंझला जाता. इतना हि नही बल्की हर बात पर सवाल करने कि आदत उसे हर चीज मी टांग डालने के बराबर लगती थी..हालाकी उसके सवाल to the point और करेक्ट होते थे. उसका अनुभव भी आ हि जाता मगर सुहेल को मौसमी कि ये आदत बिलकुल भाती नही थी.
तो जब भी मौसमी बाय चान्स या कुछ कामसे उसके सामने आती थी, सुहेल अपने आपसे पुछता था - क्या मौसमी तुम्हे अच्छी लगती है?  'हॉं, पर.. ' जवाब इस तरह से कुछ आता था.. इस जवाब को तो वो फिर भी टाल लेता था मगर आगे वह  वह अपने आप से पुछता था कि क्या तुम उससे मोहब्बत कर सकते हो? हालाकी,  इस बात का उसे सही सही जवाबही नहीं मिलता था. अक्सर इस सवाल के जवाब में वह उसके ऐब ढुंढने लगता था..और इस चक्कर में वह असल सवाल को बगल देकर खुद को कई और मश्गुल कर देता था. लेकीन ये तो उसकी खुदसे बातचीत थी.
मगर विशाल...! विशाल के मुह से उसके लिये इस कदर बाते, उसकी तारीफ सुहेल को चुभ जाती थी. मौसमी को खुद भलेही नापसंद करे मगर इतनी बारिकीयोंसे विशाल का उसे समझना सुहेल को रास नहीं आता था. हल्लक में हड्डी अटक जाये वैसे उसे तकलीफ होती थी. दिल ही दिल वह विशाल से बहुत जलता था और दुसरी और मौसमी को मैं ही तो पसंद हूँ इस बात का अहंकार भी रखता था.
पर ये तो पहली पुरानी बात थी. धीरे धीरे जब सुहेल मौसमी को समझने लगा, उसका उसमे रूझान बढता गया. वह अब उसे सामने पाकर खुदसे ‘पसंद करते हो क्या? मोहब्बत कर सकते हो क्या?’ ऐसे सवाल करना भी भूल जाता था. उसकी बढती दिलचस्पी उतनीही सच्ची थी जितनी की उनके बीच की दूरियॉं.
सुहेल की नापसंदी, मौसमी के बारे में निगेटीव्ह राय,  इस बातसे मौसमी अंजान नहीं थी.  मगर सुहेल का उसके लिये बदला रवैय्या, उसकी बदली हुई ओपिनीयनसे मौसमी बिलकुल अंजान थी. उसके पहले राय को ध्यान में रखकर वह सुहेल से ज्यादा घुलती मिलती नहीं थी. काम से काम रखती थी. थी तो वो भी नाकवाली. पीठ पीछे जो बुराईया करे उसके साथ दोस्ताना रिश्ता कैसे बनाती. इसी कारण एक फासला बनाये रखा था मौसमीने और सुहेल ने भी कभी नजदिकीयॉं बढाने की या दोस्ती करने कि कोशीश नहीं की थी.
इसी बीच एक दिन मौसमी बडी मुस्कुरा कर दफ्तर में सबसे बाते कर रहीं थी. उसकी वह हसीन अदाये देख सुहेल को उस वक्त उससे और ज्यादा मोहब्बत करने की मन्शा हो रही थी. इतनी मोहब्बत करूँ की बस उसके संग खो जाऊॅ. जिंदगी भर का मुरीद बन जाऊ उसका.. फिर अपनेही खयाली पुलाव से बाहर निकलकर उसने फिरसे मौसमी के और देखा. उसके हाथ में एक स्लेट थी.  मौसमीने सुहेल को दूर खडा देखा.. फिर उसे आवाज देकर पास बुलाया. मौसमी के हाथ मे एक स्लेट थी. उसकि ओर उस स्लेट को पकडकर कहॉ, पढो.
स्लेटपर लिखे अल्फाजोंने सुहेल के पैर के नीचे की जमिन खिसक गयी. उसपर लिखा था,
मेरे साथीयों,
अबतक अकेली थी, आझाद थी. अब थोडी और आझादी की लालच है. कोई मेरा काम बॉंट ले, मेरी रसोई, मेरे बतर्र्न-कपडे बॉंट ले, मेरा "सरदर्द' बॉंट ले और कोई मुझसेही मुझे बॉंट ले. मुझे और ज्यादा आझाद कर दे..मुझे आझाद करनेवाला हमदम, हमनशीं, हमराज, हमसाथी मिल गया है...तो शादी में जरूर आना.
मौसमी वेडस विथ विशाल / विशाल वेडस विथ मौसमी
स्लेट के पीछे- शादी की तारीख, वक्त और जगह मे मैरीज रजिस्टर ऑफिस का पता था .
सुहेल पुरी तरह से पढ भी नहीं पाया था की वॉशरूम चला गया. बहुते देर तक उसकी आँखे बहती रहीं. मौसमी सचमें उसकी नही हो सकती इस बात पर रोने आ रहा था की विशाल इस हद तक आगे बढा और पता नहीं चला इस बातपर रोने आ रहा था, वह समझ नहीं पाया. उसके अंदर का सुहेल उसे बारबार झिंझोडता रहा. उसे अपने मुॅहफट स्वभाव पे गुस्सा आ रहा था..अपने आप को इतना स्ट्रेट फॉरवर्ड मानने के बावजूद भी अपने दिल का हाल मौसमी को बता क्यो नही सका इस बातपर गुस्सा आ रहा था. बहुत देर वह खुद को कोसता रहा.
कुछ देर युॅही बितने पर सुहेल को एक खयाल आया. उस खयाल के साथ  सुहेलने उम्मीद नहीं छोडने की कसम खायी. उसने सोचा की मौसमी कि पहली पसंद तो मै ही हुं तो क्यो ना उसे अपने प्यार का इजहार करूँ. शायद वह फिर लौट आये. उसने कईबार कोशीश की मगर मौसमीसे अकेले में कोई बात नहीं हो रहीं थी. सुहेलने फिर एक लंबी चौडी ईमेल लिख दी. अपनी मोहब्बत के हवाले उसे लौटने की दरखास्त की.
मगर कई रोज मौसमी ने कोई जवाब ही नहीं दिया. लेकीन सुहेल का उससे बात करने के लिये हर बार परेशान होता देख मौसमीने ईमेलके जवाब में फिर से अपने शादी का न्योता भेजा. सुहेल अंदर से टूट गया. उसके अगले हि  रोज वह अकेली अपने डेस्कपर नजर आयी तो सुहेलने उससे रूबरू बात करने की कोशिश की. मौसमी ने सुहेल को उसकी मुहब्बत कि बातों को कोई मतलब नहीं कह दिया. सुहेल को अब भी मौसमी का जवाब चाहिए था. उसके दिल की बात सुनना था.
 परेशान होकर मौसमी ने झल्लाकर कहॉं था, "तुम्हे अंदाजा भी है कौनसी बात कब करनी चाहिए? गेट वेल सुन मॅन.' इतना कह कर वो निकल गयी थी. सुहेल को ये बात कॉंटे की तरह चुभी. मगर कहीं तो उसे लग रहा था की मौसमी शायद यह कहना चाहती है की उसे भी सुहेल पसंद है मगर अब उस बात के लिए देर हो गयी है..सुहेल को फिर यह उम्मीद की डोर अच्छी लगी. वह फिर जुटा रहा.
मौसमी के शादी को अब एक साल हो चुका था. शादी के कुछ दिनों बाद उसने जॉब चेंज कर ली थी. वह एक सोशल रिसर्च कंपनी से जुड गयी थी. अक्सर इस जॉब कि मांग के अनुसार शहर से बाहर भी रहने लगी थी.. सुहेल मौका मिलते हि विशालसे उनके घरेलू रिश्तेके बारे में पुछता था. विशाल को सुहेल का यु पुछताछ करना अच्छा नही लगता था. वो जान बुझकर कभी उन दोनों के बीच के तकरार, कभी रूठना-मनाना तो कभी झगडे के किस्से बताता था. सुहेल उसे हमेशा उन दोनों के निजी पलों के बारे में पुछने की कोशीश करता था मगर विशाल उस बात को हॅस के टालता था या कभी उपरोध से कहता था, मौसमी से कहता हॅूं तुम्हे बताने. वो बेझीझक बता देगी. और वैसे भी तुम्हे  तो मौसमी मे हि इंटरेस्ट रहेगा.. विशाल का जवाब सुहेल को  बिलकुल अच्छा नहि लगता था पर वह भी उससे जानने से बाज नही आता था.
बल्की  विशाल की बातोंसे उसे लगता था की दोनों में काफी अनबन है. कई तो कोई बात है जो दोनों मे पुरी तरह से बनती नहीं है. सुहेल इसी बात से खुश था. मौसमी के दिल में जगह बनाने के लिए वह अब भी तैय्यार था. इन दिनो मौसमी से अक्सर  चॅट करने लगा था. ऑनलाईनही बाते होती थी. बहुत बार मौसमी का रवैय्या उसे पसंद नहीं आता था. बात करते करते वह गायब हो जाती थी या कभी बिझी कहकर बात छोड देती थी. उसका रूखा व्यवहार उसे कतई अच्छा नहीं लगता था. पर कभी उसका मुड ठीक रहा तो उसकी सिधी साधी पुछताछ सुहेल के दिलपें गुलाबजल के फुवारे उडाती थी. इतने दिनों में उससे मिलने की ख्वाईश उसने जाहीर नहीं की थी. उसे एक अजीब सा डर लगता था उसके इन्कार का, मगर जब कल मौसमी ने खुद ही कहा ..
"अरे, क्या ऑनलाईन ही मिलते रहोगे. कभी आमनेसामने भी मिलो.'
"तुम कहो तो अभी मिले?'
"अरे नहीं नहीं. ऑफिसमें अटकी हूँ. चलो कल मिलते है. वही रेस्तरॉं जहॉं हमारे पुराने मतलब मेरे पुराने ऑफिस की मिटींग्ज होती थी.'
"डन. कल शाम 6 बजे.'
बस उसी मुलाकात को लेकर सुहेल इतना एक्सायटेड  था. उसने तो आज छुट्टी ही ले रखी थी. कही काम के चलते मिलने में देरी ना हो जाये. 6 बज चुके थे. उसकी कशीश बढ चुकी थी. उसी वक्त सामने से मौसमी भी आती नजर आयी. सुहेल का दिल बागबाग हो गया. दोनो इकठ्ठेही रेस्तरॉं में गये.  एक टेबल देखकर दोनो बैठ गये. मौसमी ने गॉगल्स पहने थे.
"अरे, अब तो गॉगल्स उतारो.' सुहेल
"आर यू शुअर? मुझे लगा तुम्हे मेरी मोटी आँखो से परेशानी हो जायेगी. कई डर वर गये तो..'
"ओह क्या तुम भी,  अब भी उन बातों को लेकर बैठी हो.' सुहेलने ऑकवर्ड महसूस किया. मौसमीने मुस्कुराकर अपने गॉगल्स निकाले. उसकी गहरी मोटी आँखे और उनमें लगा काजल आज पहली बार सुहेलने ठीकसे, इतने करीबसे देखा था. उसकी आँखों की चमक उसके पुरे बदन को गुदगुदा गयी. मौसमीने एक बार फिर मुस्कुराया.
दोनों ने ज्यूस और सॅण्डवीच ऑर्डर किया.
'अजीब है ना, एक ऑफिस में थे तब भी हम कभी यु बाहर मिले नही या कोई बातचीत कि नही और आज देखो..वक्त वक्त कि बात होती है- विशाल के इस बात को तो सौ मे से सौ मार्क्स '
सुहेल ने मुस्करा कर खामोशी से हि उसकी बात मे हा भरी..जैसे उसके जुबानसे कुछ नहीं निकल रहा था. सुहेल उसके वजूद से ठिठूर गया था. मौसमी पुरा वक्त उससे कई बाते करती रहीं. उसके प्रोजेक्ट कि, नई जॉब कि, नये दोस्तोंकी..कुछ बाते विशालके सिलसिले में भी हुई. विशाल जैसे अनबन, झगडों की बाते करता था वैसी बाते नहीं. बल्की उन दोनों के बीच की सुझबूझ, साझेदारी की. उनके आझाद होने की.
सुहेल का उसकी बातों की और ध्यान नहीं था. उसने बीच में ही पुछा, "विशाल तुम्हें खुश रखता है?'
"हं?'
सुहेलने फिरसे अपना सवाल दोहराया.
"कोई किसी को क्या  खूश रख सकता है? और कैसे रखेगा? खूश रहना या ना रहना ये तो अपनी अपनी नीजी चॉईस होती है.'
"ये तो किताबी बाते हुई. और जब भी कोई ऐसी किताबी बाते करता है, समझो की वह खूश नहीं है.'
"ये भी तुम्हारी अपनी चॉईस है..मेरे बात का अपने मतलब से मतलब लेना. ' वह मुस्कुरा पडी.
"और तुम दोनों के बीच के ज्याती लम्हे..कई बार तो तुम शहर के बाहर होती हो, और जब शहर में होती हो  तो रात के दो बजे भी ऑनलाईन नजर आती हो और, विशाल तो ग्यारह बजे के बाद भी फोन नहीं उठाता..मुझे तो लगता है....'
सुहेल की बात को काटकर मौसमी ने झटसे पुछा, "तुम क्या मेरी सेक्स स्टोरीज सुनना चाहते हो? या वो कौनसा वक्त होता है जब हम दोनो हमबिस्तरी में मश्गूल होते है..और कौनसे वक्त में काम करते या सोते है..बडी दिलचस्पी नजर आ रही है...' मौसमी की आँखो में मुस्कान नही थी,  गुस्सा या संदेह भी नही था..मगर कुछ था... उसकी नजर का वह जवाब उसे चीरता गया.. सुहेलने आँखे फेरी.
'तुम्हे अगर सच मे इंटरेस्ट हो तो बतादू...वैसे तुमने अबतक विशाल को पुछ लेना चाहिये था..कुछ कहता नही क्या वो..कैसे दोस्त हो..खास दोस्त कहलाते हो न..चलो बताओ कहा से बताना शुरू करू..फोरप्लेयिंग से या..' सुहेल ने  बात को वहीं काटा. 'अरे यार में तो युंही तुम्हारी...'
'अच्छा पनीर चिली खओगे..यहा कि पनीर चिली बढीया होती है..पनीर और चिली का ये मिश्रण हि मुझे बडा मजेदार लगाता है '
 मौसमीने भी बात को खिंचा नहीं. कुछ देर इधरउधर की बाते हुई. मिलते हि जो आनंद था अब वह बातोंसे घट गया था..थोडी देर मे दोनों रेस्तरॉं के बाहर आये. मौसमीने बिना वक्त जाया किये उससे अलविदा कहा. सुहेलका जवाब मिलनेसे पहलेही वह पलटकर चली गयी.
सुहेल उसे लौटते जाता देख दर्द महसूस कर रहा था. पर ये दर्द किस चीज का था यह उसे समझ नहीं आ रहा था. पंधरा दिन पहले सुहेल का अक्सीडेंट हुवा था. उसमे उसके चेहरे पे काफी खरोज भी आयी थी. उसके बाये आँख के नीचे अब भी काला नीला दाग था. होठों की हलकी सूजन के कारण बात करने मे परेशानी हो रही थी.  साथ चलते वक्त उसने दो बार दिवार का सहारा लिया था. मगर इसमे से कोई भी बात मौसमी ने महसूस नहीं की थी.
वो बडी उम्मीदसे आया था की मौसमी उसके जखमोंको बिना कहे भॉंप लेगी. फिर हमदर्दी से कुछ कहेगी. बाईक चलाते वक्त ध्यान रखने की नसीहत देगी. या डॉंट भी लेगी. खुदके लिए उसे परेशान होते सुहेल को देखना था..उस परेशानी में मौसमी के ईश्क के दबे भाव उभर आते देखना था. मगर मौसमी ने भॉंपना तो दूर उसे ढंगसे देखा ही नहीं था..
सुहेल को अकेलापन महसूस हुवा. उसके दिल की धडकने बढने लगी थी. उसे चक्कर आ रहा था. सालभर पहले वो टूट चूका था पर आज तो उसके अनगिनत टुकडे रास्ते पर बिखर गये ऐसा उसे लग रहा था. उसके हाथ से बाजरे की पुरीयों का पैकेट गिर चुका था. उसके दिल मे खयाल आया, वह उसके बारे में पहलेही सही था. मेरा और उसका कोई ताल्लुक नहीं हो सकता. वह बिलकुल एक आझाद खयालों की बिगडी हुई अडियल लडकी है....और मेरे जख्म उसने सच में देखे नही?  नहीं, वह जानबुझकर अंजान बनी होगी.. बेशक वो अब भी मुझसे मोहब्बत करती है..उसे मेरा दर्द देखा नही गया होगा..नहीं हमारा कोई मेल नहीं था.. देखा ना मुझे कैसे कह रही थी..मुझे भला उसके सेक्स लाइफ मे क्या इंटरेस्ट रहेगा मगर वह कितने बेशरमी से कह रही थी कि कहा से शुरू करू...या मुझे जलाने कि कोशिश कर रही थी, मुझे कोई सजा देना चाहती है क्या? नही बत्मीज है वो.. वो खुद से बेहिसाब उलट पुलट बडबडाता रहा. उसे खुद की सुदबूद भी बची नहीं थी. बेहोशी कि गुंजाईश नजर आ रही थी.. वह बेहत अधमरा महसूस कर रहा था..इतना की जेब में बज रहे उसके फोन की रिंग भी, जो उसके बीवी की थी वह भी उसे सुनायी नहीं दी!!

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