सामनेवाली खिडकीसे झॉंकती वो नजर
जब भी दिखे मुझे अपने आईने मे
लगता बतिया रही है वो हवाओंसे
कोई सालों पुराना आँखो देखा मंजर
जब भी दिखे मुझे अपने आईने मे
लगता बतिया रही है वो हवाओंसे
कोई सालों पुराना आँखो देखा मंजर
एक पल रूकती नहीं वो निगाहे
एक पल बुझती नहीं वो जाने कैसे?
एक पल बुझती नहीं वो जाने कैसे?
बस जमिन से आस्मॉं तक
झुमझुमकर दौड लगाती, दिखती है
उसकी निगाहे...परिंदे..
झुमझुमकर दौड लगाती, दिखती है
उसकी निगाहे...परिंदे..
मैं भी देखती रह जाती हूँ, उसे आईने मे
उसकी बोलती रंगरेजी काली आंखे,
उनमे में बसा बेशुमार रंगसाज
हाय क्या कहूँ...
उसकी बोलती रंगरेजी काली आंखे,
उनमे में बसा बेशुमार रंगसाज
हाय क्या कहूँ...
मैं तकती रहती उसके खिडकी को
कभी तो उसकी आँखो की कहानी
उसकी जुबान से सुनू सोचके
पर वो खुद में ही रहती इतनी मगन
छेडू भी तो कैसे पुछे है मन..
मैं फिर खामोश..
कभी तो उसकी आँखो की कहानी
उसकी जुबान से सुनू सोचके
पर वो खुद में ही रहती इतनी मगन
छेडू भी तो कैसे पुछे है मन..
मैं फिर खामोश..
वैसे, बहुत बार सोचा, कमसकम बतादूँ
कुछ और ही है, उसके अखियों की बात
बडी ही मस्तमौल, शरारती और
कह दूँ, बडी नाकवाली अडियल भी,
कभी दिखता ही नहीं उनमे कोई डर
कुछ और ही है, उसके अखियों की बात
बडी ही मस्तमौल, शरारती और
कह दूँ, बडी नाकवाली अडियल भी,
कभी दिखता ही नहीं उनमे कोई डर
यकिनन उसके घरवाले चुराते होंगे आँखे
शायद आँखमिचौली बहुत खेलते होंगे
ऐसी नजाने कौनसी रगबत, तमन्ना
किस मंजील की उम्मीद पनप रहीं उनमे
जो इतनी जानदार तेज है उसकी नजर
शायद आँखमिचौली बहुत खेलते होंगे
ऐसी नजाने कौनसी रगबत, तमन्ना
किस मंजील की उम्मीद पनप रहीं उनमे
जो इतनी जानदार तेज है उसकी नजर
उसके इस हुनर से बेडीवाला होगा जरूर बेखबर
जखडकर भी उसे, वो बेकैद है इस कदर..
और जिस दिन होगी वो पुरी आझाद
वो समझ ही ना पायेगा उसकी कब हुई थी सहर
जखडकर भी उसे, वो बेकैद है इस कदर..
और जिस दिन होगी वो पुरी आझाद
वो समझ ही ना पायेगा उसकी कब हुई थी सहर
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