शुक्रवार, १३ जुलै, २०१८

बिरहा की रैना

चुपके से जाना
बिरहा की रैना
उनसे कहना
भीगे हैं नैना
उनकी यादोंका ढेरा
तकीये पे बिखरा
भीतर खौफ सारा
बाहर घना अंधेरा
दूर बरखा बरसती
हौले गीत सुनाती
दिल बहलाती
जान भी जलाती
चुपके से रतिया
उन्हे देख के बतिया
मेरा हाल जो जिया
क्या वही हैं पिया
दूरीयां जिनका नाम
ये कैसे है काम
उनसे कह दो चुकाने
हिचकी के दाम
पधार के अब धाम
जा री जा रैना
बरखा संग होना
उनका दिल खटखटाना
उनसे जवाब लेना
सुबह की उडी ओस
नमकिन शामोंका  रोज
दिल की मछली
जिगर की बिजली
हरजाना कैसे होगा??
राह पर इंतजार करती
मैं खिडकी से सटकर ही खडी
दूर रिमझिम बुंदो की लडी
निंद अखियोंसे उडी
इन सबका हिसाब कैसे रखना

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