गुरुवार, १२ जुलै, २०१८

पुर उम्मीदी

‘‘तूम मेरे लेटर का जबाव क्यों नहीं दे रहे हो. दस दिन बीत गये है. तुमने पढा तो है ना...’’
‘‘आर यू क्रेझी. जबाव नहीं दिया मतलब तुम्हे समझ जाना चाहिए था. इतना भी नहीं जानती.’’
‘‘अं...जान तो गयी..लेकिन कहने और जानने के बीच बहुत कुछ.....
‘‘इतनी ना समझी! इतनी अडीयल. खुद को बेवकुफ क्यों बना रही हो.’’
‘‘ ना..ना बेवकूफ नहि हुं..पुर उम्मीदी हूँ..अब तुमही कहो उस उम्मीद के डोर का क्या करूँ. जो अब भी तुम अपनी हाथ में थामे हो. या तो काट दो या तो करीब खिंच लो.’’
फाईलों पर गढी नजर उठाकर उसने उसकी ओर बेरूखीसे देखा. वो अपनी होठोंपे मासूमसी मुस्कान लेकर  बडी अदबसे फिर भी खडी थी, उसके जवाब के इंतजार में.

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