बात कोई नयी हो
अंजानी, अनसूनी हो
अकल्पित हो
और चुभ जाये दिलमें
तो खैर,
दर्द होना वाजिब है
मगर बात पूरानी हो
जानी-पहचानी हो
हजार दफा बतायी हो
कई बार सूनी हो
इत्तेफाक की गिनती भूले
उतनी बार रूबरू हुई हो
फिर भी चुभ जाये दिलमें
तो
आँखो में बाड क्यों आता है
लाजमी तो सूखा पडना है....
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