मंगळवार, २६ जून, २०१८

वो

आज
वो ना रोज की तरह हडबडा रही थी
ना काम बिघाड रही थी
ना सहमी सहमी थी
ना  बुझी बुझी
फुर्ती से निपटा रही थी
काम का ढेर, बिना डॉंट फटकार के
लगा की आज ही जिंदा हुई
वजुद तो जैसे इसका पहले मालूम ना था

जरा गौर से देखा तो
उसकी आँखो मे हलकी सी चमक थी
चेहरे पे प्यारीसी मुस्कान
याद आया की
आजसे पहले ये कभी ना दिखी

दोपहर लंच मे मिलने आयी
सूजी का हलवा टिफीन से बॉंटते हुवें
‘आज क्या खास..अलग सी लग रही हो’
पुछा मैंने तो,
शर्म से थोडी लाल हुई
जवाब मे बस मुस्कुरा गयी

न जाने क्या सोचा उसने
फिर लौटी पलटकर आधे मिनट में
वैसे तो तुम कहोगी नही किसीसे
फिर भी कहती हूँ..हमारे बीच ही रखना..
वो क्या है की जाने कितने सालों बाद
कल चैन की नींद सोयी
... जी उन्होंने कतई जबरदस्ती नहीं की..!!

कहते ही खडी रही, अपना टिफन उठा के
चुपचाप सी, जवाबन मैं भी खामोश
और भी कुछ कहना था उसे शायद
मेरे मेज से सटकर  झुकी..
फर्श पर नजर गाढ़ी
और धीरे से बुदबुदायी
हमबिस्तरी तो ठीक है
पर मेरी एक चाहत हैं..
किसी दिन, वो बस्स किस करे
मेरे लबोंनेे प्यार कभी महसूस ना किया.!!!
बदन का ये हिस्सा कभी तामीर न हुवा
वो खामोश हुई.. मैं बेजुबॉ

टिफन मे अब उसके खातीर हलवा बचा ना था...
...और मेरे हल्लक मे अटका मीठा ना था..!

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