बुधवार, २७ जून, २०१८

समझदारी

बाहर बारीश रूकी हैं
सुनायी देती हैं..
घर के भीतर जाडोंने
जगह बना ली है
दिखाई देती है..
पौधों के फुल मुरझा रहे है
अटेन्शन लेते हैं..
बिस्तर पर फैला पुरा घर
अनदेखा होता हैं..
 किचन मे तरकारी, फल, सामान
और बर्तन के जगहों की
उलट पुलट, माफ हैं..
पडोसीयों के झगडे
उनके बच्चोंका शोर
अम्मा का मशवरा
बाबा का प्यार
बॉस की खीटपीट
लॅपटॉप की टकटक
चायवाले की झिकझिक
अनसूनी होती हैं..
कर्जे का बोझ
इमीआय का प्रेशर
तरह तरह के बिल
कामवाली के नखरे
उठा लेते हैं..
जीमेल, फेसबुक, व्हॉटस् अप
मोबाईल नोटिफिकेशन्स की
जिंदगी में जरूरत से ज्यादा
दखलबाजी
कुबुल होती है
फर्श से लेकर अर्श तक
गीलेसे लेकर खुश्क तक
चक्की से लेकर तकनिक तक
सब कुछ समझ आता हैं
बहोत कुछ बरदाश्त भी होता हैं
पर दो कदमों की स्पेस मे
बिना अनबन का खाली सन्नाटा
महसूस नही होता? क्यों?

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