उस
रोज उसने मुझे नाराजगीसे पुछा,
मैं
तुम्हारी पीडा को समझना चाहता हु
पर, तुम हसती बहुत हो,
इस
दुख और संघर्ष के जीवनमें
तुम
इतना हसती कहॉसे हो..
मैंने
फिर मुस्कुराकर कहॉं
जब
दुख और संघर्ष है ही जीवनमें
तो
जिसे पाने की चाह है, उसे
हरदम, हरपल महसूस क्यो ना करे
बस
वहि एहसासात मुझे गुदगुदी करते रहते
और
मैं हसती..हसती बहुत हूँ...!
पीडा
का क्या है, वो तो हर किसीमें बसी है..
पर
उसे समझना हर किसी के बसमें नहीं..
छोडो, मैं मुस्कुराती, हसती रहूँगी...
तुम...तुम
खोजते रहना..
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