बुधवार, १० जानेवारी, २०१८

पैगाम


तेरी याद आयी
तो तुझे खत लिखा
जज्बातोंका पैगाम
सरेआम रखा
तेरा जो खयाल हुआ 
दिल जोर से धडका
धडकती रफ्तार को मैंने
फिर तेरे नाम लिखा
अकेली ठंठी शामोंकी
न कटती राहोंकी
मायूसीभी लिख दी
तुम्हे पुॅछती
सुबहकी धूप भी लिख दी
लिखी तो,
दूरीयों की कसक
देरी की कश्मकशभी
सुलगते अरमान और
दिल के तुफान भी
उससे भी जी न भरा तो
गिली अखियॉं
नम एहसासों के
सावन भी जोड दिये
मैंने मेरे काजल का नुक्ता भी
छोड दिया हैं...समझो
अतीत से यादोंका
वर्तमान ही मांग लिया हैं..
सुनो तुम्हे खत लिखा हैं..
सच तो कागजको
खालीही रखा है..
हां,
मेरे प्रिय....तुम्हारी प्रिया
ईक इत्तेसे जुमलेंमेंही
सारा किस्सा कैद किया हैं
खत का वजन समझलो
युं कम कर लिया हैं..
देखो, मैंने फासला खत में भी न रखा
हकीकत की जुदाई, तू भी मिटा
क्या कहे,
पता ना मिला तो
ईत्र की इश्किया खुशबू
लिफाफे में रख दी
बहती फिजाओं के नाम
जुआ, जान लिख दी
महक ऊठेगा जब तेरा शहर
लौट आना मेरे आंगन..
तेरी याद आयी तो
तुझे खत लिखा
सुफीयानी पुकारसें
दर्द सुखन लिखा...

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