मंगळवार, १० जुलै, २०१८

बेपता खत

अच्छा सून...दो दिन से तेरी बहुत बहुत याद आ रही थी..एक खालीपनसा महसूस हो रहा था...पिछले दो दिनसे तेरे यादोंकी बारिश मुझे भिगाये जा रही थी...जगह जगह मैं तुम्हे मिस कर रही थी..वजह बेवजह..! फिर बैचेनी इतनी उमड आयी की, मैंने एक कविता ही लिख दी..अब हंस मत...अच्छा लिखा था, पर अब तू रुठा ही ऐसा है कि तुम्हे भेज नही सकती थी, इसलिए फिर वह कविता एक दुसरे दोस्त को भेज दी...

तेरे खयालों के उलझन में लिपटे जज्बात तुझसे बेखबर दोस्त तक पहुंचा दिये...अजीब हैं ना..मैं हूं ही अजीब.. !! खैर असली बात तो ये है की उस दोस्त ने भाप लिया, तेरी यादोंसे मेरा झुंझना.. तनहा महसूस करना..उसने कविता के जवाब में कहा,  हो सके तो तेरा ये खालीपन किसी और सच्चे दोस्त से भर जाये…’ कितनी खुबसुरत दुवा थी..मैने भी झटसे आमीन, सुम्मा आमिनकह दिया..दुवा खाली कैसे जाने देती! पर तुम्हे पता है...दुसरे ही पल खयाल आया की तेरी जगह..तुने पैदा किये इस खालीपन का सर्कल कोई नही भर सकता...मैं चाहती भी नहीं की वो भर जायेकोई और उस जगह का हमदोस्त कहलाये..ना ना बिलकुल जरुरी नही...ये सारी बैचेन खलबली है ना यही ठीक है...!

वैसे कल तेरी यादे बेपरवाह होकर परेशान कर रही थी, इसके बावजुद भी मुझे सुकून की नींद आयी…. जानते हो क्यो?

तुम्हे मिस करू इस कदर अकेलेपन का एहसास देनेवाला...इस तनहाई के भवर मे सुकून भी देनेवाला तू और सुकून मे खलल डालनेवाले तनहाई की, अकेलेपन की जगह भर जाये कह कर मेरे चैन ओ राहत की दुवा करनेवाला वो दोस्त..
दोनो भी अपनी अपनी बिंदुओंसे मेरे लिये इतमिनान हि तो मांग रहे थे...मुझे अपनी अपनी दोस्ती से खुशकिस्मत बना रहे थेमुझे अजीज कर रहे थे..!

तुम्हे क्या बताऊं कितनी सुकून की नींद सोयी…!

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