गुरुवार, ६ एप्रिल, २०१७

माही

यूँ ना खेल लुकाछुपी
दिल बैठा जाता है..
तू ना दिखे तो माही
दिल रो उठता है..
कहॉं छुपा है तू
मैं कबसे परेशान हूँ
इक झलक के वास्ते
मैं तरस रहॉं हूँ
मैं चल पडा हूँ ठुंठने रास्ते
जो तुझ तक ले जाये
पर, बदल दिया तूने पता
या मैं लापता हो गया र्हूॅ
माही,
कैसे ठुँठ लू मंजिल मेरी
कुछ तो सुलझा दे ये पहेली 
फिरदौस की चाह है 
और बंजर हथेली
देख तू अब ना कर सितम 
सामने आ, करदे रहम
जो तू खेलता रहॉं यू सख्त
रुठ ना जाये जालीम कुदरत 
आ माही, रूबरू आ
मेरे बेहाल हाल को देखने आ,
मेरे माही,
तूही जख्म तूही दवा
तूही इबादत तूही दुवा
तेरे होने से होना है
तेरे ना होने से ना होना
बस्स भी कर,
यूँ छुपकर रहना
खेल का उसूल तो
और भी है..

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