शनिवार, ९ जुलै, २०१६

कहना

लगता था,
वक्तके हाथों पनपकर
तुम बडे जरूर हुए होंगे
पर वही पुरानी नादानीयाँ
आज भी बरकरार है..
....
अब तो छोड दे 'बचपना'
कई बार कहता रहा मन
पर, तुम्हारी मासूम अदाये ही
मुझे गुस्ताख बना रही है
कहना 

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