आज एक मीडिया वर्कशॉप था
पत्रकारोंका एक जथ्था आया था
चाय, पानी,बिस्कुट, नमकिन
और कुछ रंगबिरंगी स्नॅक्स
लुत्फ़ उठा रहे थे बारीबारी
‘शिशु एवं बचपन विकास ‘
विषय बडा अहम था
गंभीरता से सूनना जरुरी था
आयोजक ने आवाज लगाई
लोकशाही के चौथे स्तंभ
अपनी अपनी जगह ले लो
धीरे धीरे हॉल की ओर
सारी जनता चल पडी
नैपकीन से पोछा हाथ धोने मे
बैठक मे मेरी एंट्री जरा लेट हुई
चारो और नजर घुमाई
एक भी कुर्सी खाली ना पायी
देखा जरा गौर से
रुहानी सुकून महसुस हुई
सारे आदमी आगे बैठे थे
सारी औरते पीछे बैठी थी
बडी दिलचस्पी से सुन रहे थे
सवाल भी कर रहे थे
सभी आदमी
बडा हसीन लगा ये नजारा
शिशु के पालन पर
आदमी का तवज्जू देना
फिर ख्याल आया
इस सेशन की उपलब्धि क्या होगी
स्टोरी? न्यूज? फीचर?
मां से जा के पूछो
मां से जा के कहो
मां को तंग करो
अरे सूनो, इसको स्मभाल लो
इसे खिलाओ पिलाओ पर
रुलाओ मत
तुम्हारा ध्यान कहा हैं
बच्चे पर ध्यान दो
रात घर पे क्या होगा
इसमे का एक भी जुमला
निकला उनके मुह से तो..
या इन सब जुमलो की जिम्मेवारी मे
अपना हिस्सा निभा ले वो..
मैं पुरा वक्त बस इसी बात से
फिक्रमंद रही…
वर्कशॉप खत्म हुवा तब पता चला
हाथ में कोई स्टोरी ना आयी…!!!
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