शनिवार, ४ मार्च, २०१७

बहुत आसान था ना...

बहुत आसान था ना तुम्हारे लिए
यूँ हात छुडाकर जाना
और पलटकर भी ना देखना
ना अपने दिल को टटोलना
ना मेरे एहसासात को महसूस करना..
मैं वही खडी थी...घण्टो..
अब नही तो तब तुम पलटोगे
और मैं गले लग जाऊँगी
सारी फसादे भुलाकर...
सारे फासले मिटाकर
खुद की बेडियों से उलझकर, दुनिया से लढकर
हो जाती तुम्हारी...तुम्हे जिंदगी बनाती..
.................
सोच रही होंगी
बहुत आसान था मेरे लिए
युॅ हात छुडाकर जाना
और पलटकर भी ना देखना
अपने दिल को टटोल लेना कभी
और खुद ही बतलाना
कितना आसान होगा मेरे लिए
दर्दसे कपकपाते होठोंको और
नम आँखो को तुमसे छुपाना...
जानती हो, 
बस चार कदम की दूरी थी दरमियाँ
ना तुमसे वो दूरी चली गयी 
ना मुझसे मिटाया गया फासला
दिल जखडा हुआ था मेरा
हालात और मजबूरींयोंसे
काश रूबरू कराता उनसे 
तो क्या आ जाती तुम साथ?
दिल तो कह रहा है हा,
पर अब तो काश कि हुई ये बात 
और खेल देखो, आज 
सामने हे एक दुसरे के मगर
सदिया बह रही है...
ना तब उलझ सका दुनिया से 
ना अब लढ सका बेडीयोंसे
खैर छोडो, क्या तुम जानती हो
सख्त नही पर, तुम बहुत ताकदवर निकली
अपने एहसासों का गला घोटकर 
आगे बढ चुकी हो शौकसे
और मैं इतना बुजदिल हूँ
तुम नही बसती एहसासों में
ये भी नही कह सकता...
अच्छा है
सोचती रहना, बहुत आसान था मेरे लिए... 


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