रविवार, १२ मार्च, २०१७

मैं जो भाग चला आया

मैं जो भाग चला आया
भाग ना सका तुझसे
दिल तो अब भी वही भागे 
जिस गली तेरा घर है..

छोड दूँ तेरा दामन
हात लगनेसे से पहलेही..
ये कैसा सितम है तेरा
तू करती भी नही और मारती भी है..

मिटा दू तेरी यादों कों, हर लम्होंको
जो तुने सीधेसे दिये भी नही
पर कैसे मिटाऊँ इस एहसास को
जो तू मेरे इर्दगिर्द है

मैं जो भाग चला आया 
भाग ना सका तुझसे
इश्क में उलझकर खुदसे
खिंचा जा रहा हूँ, तेरी ओर

तुझसे दूर होकर
तराश रहॉं हू खुदको
मैं तो फिर भी फँसा हूँ तुझमे
ये कैसे समझाऊँ खुदको

मैं फिसलकर एैसा गिरा हूँ
चोट दिखाऊ भी कैसे
समझले, कतरा कतरा टुटा हूँ 
और कतरा करता डुबा हूँ

एक ख्वाहीश- पलभर सही 
बसा ले तेरे अरमानों में मुझको
या देदे तू एक नजर इश्ककी
मैं उसेही समझ लूँगा सेहर
थम जाउँगा उसके बेहम में

मैं जो भाग चला आया
भाग ना सका तुझसे 

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